ऐ मेरे हमनशीं

मेरे हम-नशीं चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम अब तो काँटों पे भी हक हमारा नहीं

जालिमों अपनी किस्मत पे नाजां हो दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है
वो यकीनन सुनेगा सदायें मेरी क्या तुम्हारा खुदा है हमारा नहीं...!

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