हर एक

हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है
तुम्ही कहो की यह अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है

ना शोलों में यह करिश्मा ना बर्क में यह अदा
कोई बताओ की वोह शोख-ए-तुंद-खु क्या है

यह रश्क है की वोह होता है हम-सुखन तुम से
वगर्नाह खौफ-ए-बाद-आमोजी-ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
खुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं काईल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वोह चीज़ जिस के लिए हम को हो बेहिश्त अज़ीज़
सिवा-ए-बादाह-ए-गुलफाम-ए-मुश्क-
बू क्या है

पियूं शराब अगर खूँ भी देखलूँ दो चार
यह शीशा-ओ-क़दः-ओ-कुजः-ओ-सबू क्या है

रहीं ना ताक़त-ए-गुफ्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये की आरजू क्या है

हुआ है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगर्नाह शहर में गालिब की आबरू क्या है!

contributed by, Abhishek

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